बार-बार यह कहा जाता है
कि मप्र का किसान अपनी क़षि की उत्पादन क्षमता बढाने में कोई रूचि नहीं
लेता है। यही वजह है कि आज भी किसान के हालात जस के तस हैं,लेकिन अब
धीरे-धीरे राज्य के किसानों के नजरिये में बदलाव आ रहा है।
लगातार अपने
खेतों पर नजर गडाये रखने वाले किसानों के लिए खाद आवश्यक सामग्री हो गई है
और जब खाद नहीं मिल रही है तो किसान सडक पर जमीनी संघर्ष करने पर भी मजबूर
है। खाद का संकट हर साल पैदा होता है। मप्र सरकार इसके लिए केंद्र को दोषी
ठहराती है, जबकि असलियत यह है कि खाद आज भी मुस्लिम कंट्री से आती है और
इसके आने की प्रक्रिया में लंबा समय लगता है। दिल्ली से मप्र के शहरों तक
खाद पहुंचने में एक महीने का समय लग जाता है और तब तक किसान बेकाबू होने
लगता है। इन दिनों मप्र का किसान खाद संकट से परेशान है। अब तक 81 लाख
हैक्टेयर क्षेत्रफल में रबी फसलों की बौनी का काम हो चुका है, इसमें गेहूं
का रकबा 28 लाख हैक्टेयर को पार कर चुका है। मप्र को नवंबर, 2011 तक 2.34
लाख टन यूरिया मिल चुका है,लेकिन अभी भी 1.36 लाख टन यूरिया की कमी है।
यूरिया की कमी के चलते विदिशा,सतना,दतिया,बैतूल,पिपरिया, ग्वालियर,
रायसेन, छिंदवाडा, गुना आदि शहरों में खाद का गंभीर संकट बना हुआ है। किसान
सडक पर उतरकर चक्का जाम कर रहे है, खाद कार्यालयों पर हमला बोल रहे है,
जिसके चलते कई स्थानों पर पुलिस की देखरेख में खाद का वितरण हो रहा है।
खाद न होने को लेकर राजनीति भी जमकर हो रही है, कांग्रेस सिर्फ बयानबाजी कर
रही है और भाजपा केंद्र पर आरोप मढ रही है। मप्र में पिछले दो-तीन सालों
से अलग-अलग संगठन काम कर रहे हैं और किसानों में जागरूकता का प्रतिशत बढा
है। इसके चलते किसान अब अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए चुप बैठने वाला
नहीं है। यही वजह है कि पिछले वर्ष दिसंबर 2010 में किसानों ने मप्र की
राजधानी भोपाल को जाम कर दिया था। यह करिश्मा भी भारतीय किसान संघ ने किया
था। इससे साफ जाहिर है कि किसानों की नाराजगी का प्रतिशत लगातार बढता ही
जा रहा है। इसका लाभ कोई भी उठा सकता है। किसान अभी भी सिर्फ अपनी फसल
अच्छी पाने के लिए इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर है, लेकिन किसानों को राहत
नहीं मिल रही बल्कि किसान अपने आपको ठगा महसूस कर रहा है और सोच रहा है कि
कब उसके दिनों में परिवर्तन आयेगा अथवा ऐसे ही रोजाना किसी न किसी समस्या
से जूझने का कूचक्र रचा जाता रहेगा और यह रास्ता निराशा की ओर जाता है यही
वजह है कि मप्र में किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत हर साल बढ रहा है
इस दिशा में न तो सरकार सोच रही है और न ही जागरूक नागरिक। किसानों को नई
राह दिखाने पर विचार करने का समय आ गया है।
हर पांचवा बच्चा प्रदेश में अंडर वेट :
दिसंबर 2011 के प्रथम सप्ताह में नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ न्यूट्रीशियन
की रिपोर्ट में मप्र के बच्चों को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि शिशु म़त्युदर में पूरे देश में मध्यप्रदेश
दूसरे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में हर पांचवा बच्चा कम
वजन का है। राज्य सरकार ने मप्र में शिशु म़त्युदर के नियंत्रण के लिये
संस्थागत प्रसव, जननी सुरक्षा योजना, जननी एक्सप्रेस योजना चला रखी
है,लेकिन तब भी उसके परिणाम बेहतर नहीं मिल पा रहे हैं। सर्वे रिपोर्ट के
अनुसार प्रदेश में शिशु म़त्युदर 67 प्रति हजार जिंदा बच्चों में है।
शिशु म़त्युदर सबसे कम इंदौर में है, जबलपुर में शिशु म़त्युदर बेहतर है
यहां पर 50प्रतिशत जिंदा बच्चों में है, पन्ना की स्थिति सबसे खराब है
वहां पर शिशु म़त्युदर 86 प्रति हजार जिंदा बच्चों में है। निश्चित रूप
से यह चौंकाने वाले आंकडे है जिस पर हम सबको विचार करना चाहिए।
'' जय हो मध्यप्रदेश की''
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