सचमुच बडी बेचैनी होती है जब मध्यप्रदेश की सरजमी पर रहकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर चमकने के बाद अपने राज्य को ही भला बुरा कहने की प्रव़त्ति नेताओं में बढ रही है इससे राज्य की अस्मिता पर भी सवाल उठे हैं। आखिर शरद यादव मध्यप्रदेश से इतने ही दुखी है तो वह अपनी राजनीति करने के लिए बारबार इन दिनों दौरे पर क्यों कर रहे है। हाल ही में एनडीए के संयोजक और जनता दल यू अध्यक्ष शरद यादव ने भोपाल में कहा है कि मध्यप्रदेश के लोग मरे हुए हैं। यहां पर प्राक़तिक संसाधन का जमकर दुरूपयोग हो रहा है,लेकिन कहीं भी विरोध नहीं हो रहा है। शरद यादव की इस पीडा के भीतर क्या वजह है यह तो वह जाने,लेकिन मध्यप्रदेश सूबे को मरा करने का अधिकार यादव को नहीं है, उन्हें अपने बयानों को वापस लेना चाहिए,क्योंकि राज्य की राजनीति में सक्रिय भागीदारी करके नेता अपना नाम तो कमा लेते हैं,लेकिन राज्य को क्या मिलता है इस पर भी कही विचार नहीं होता है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश आज भी कई क्षेत्रों में पिछडा हुआ है, न तो शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल है और न ही तकनीकी क्षेत्र में बोल बाला है। हालात इस कदर बदतर है कि पलायन थम नहीं रहा है, गरीबी-बेरोजगारी बढ रही है, विकास दर घट रही है, कुपोषण से मौते हो रही है,उद्योग-धंधे आ नहीं रहे है इसके बाद भी मध्यप्रदेश विकास के पायदान पर बढने के लिए बेताब है। लोग भी तेज रफतार से विकास में जुटे है। यह सच है कि पिछले दो दशकों से विकास का हल्ला तो खूब मच रहा है,लेकिन जैसी विकास की धारा में बहना था, वैसे हालात नहीं बन पाये हैं इसके बाद भी विकास में एक कदम आगे तो राज्य बढा ही है,तब भी शरद यादव जैसे खाटी समाजवादी नेता मप्र को मरा हुआ सूबा कहें तो उनके प्रति गुस्सा आना स्वाभाविक है। वैसे भी मध्यप्रदेश में इस नेता का कोई चार्म नहीं है, जब यह दौरे पर होते हैं तो पार्टी कार्यालय में 100 से 200 लोग बामुश्किल पहुंचते हैं, पत्रकारों से भी अनबन हर पत्रकारिता वार्ता में हो रही है। यादव कम से कम राज्य में कोई बढी योजना लाने में कामयाब नहीं हुए है अगर उन्होंने राज्य के विकास में कुछ किया है तो उसका खुलासा भी कर दें।
'' जय हो मध्यप्रदेश की ''
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