यूं तो नौकरशाहों की कार्यशैली पर उंगलिया जब तब उठती रही है। केंद्र सरकार ने अब उन नकारा अफसरों को घर बैठाने का मानस बना लिया है, जो कि किसी भी प्रकार के कामकाज करने की जरूरत तक महसूस नहीं करते। बेलगाम नौकरशाहों पर आसानी से उन्हें कोई बांध नहीं पाता है, पर जब-जब अफसरों की कार्यप्रणाली का आंकलन होता है, तो फिर वे दंडवत होने में देरी भी नहीं करते हैं। मप्र में नौकरशाहों की कार्यशैली पर खूब सवाल उठते हैं। उनके भ्रष्टाचार की कहानियां अखबारों की सुर्खिया बनती रहती है, आयकर के छापों में बंगलों से करोड़ों रूपये मिलते हैं, सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करने में उनका कोई शान ही नहीं, लेकिन फिर भी आम आदमी को आंखे दिखाना उनकी फितरत में हैं। वर्ष 2011 दिसंबर महीने में केंद्र सरकार ने अक्षम और नकारा नौकरशाहों की छुट्टी करने के लिए एक परिपत्र राज्य सरकार को भेजा था कि वे बताये कि उनके राज्य में कितने अफसर नकारा है। इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और न ही केंद्र को रिपोर्ट भेजी गई। अब फिर से केंद्र सरकार ने एक जुलाई को फिर राज्यों को याद दिलाया है कि वे अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के कामकाज की समीक्षा करें और जो नकारा एवं अक्षम हैं उन्हें सेवानिवृत्त किया जाये। कम से कम 15 साल की सेवा करने वाले अधिकारियों की समीक्षा करने के निर्देश दिये हैं। इस आदेश के चलते अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और वह अपने अपने हिसाब से रास्ते तलाश रहे हैं। मध्यप्रदेश के नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के प्रकरण लोकायुक्त एवं आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में चल ही रहे हैं इसके साथ ही एक दर्जन से अधिक अफसरों की गोपनीय चरित्रावली भी गड़बड़ है। इन अफसरों ने राष्ट्रपति तक दस्तक दी हुई है। सीआर खराब होने के चलते अधिकारियों को अब प्रमोशन में काफी दिक्कतें आती हैं। जिन अफसरों ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा पर दाग लगाया है उनमें जोशी दम्पत्ति मुख्य हैं। आईएएस दंपत्ति अरविंद जोशी एवं टीनू जोशी के यहां से आयकर विभाग को छापों में करोड़ों रूपये मिले थे। इन अफसरों को बर्खास्त करने की राज्य सरकार सिफारिश कर चुकी है। इसके साथ ही करीब एक दर्जन से अधिक और अधिक नौकरशाहों पर भी ऐसे सवाल खड़े हुए हैं जिनके खिलाफ विभिन्न आरोप एवं प्रत्यारोप जहां तहां दर्ज हैं। आईपीएस अफसर अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देने में अक्सर कन्नी काटते हैं। मप्र के 23 आईपीएस अफसरों ने अपनी अचल चल सम्पत्ति का ब्यौरा केंद्र को नहीं भेजा है। कुल मिलाकर एक बार फिर अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के कामकाज को लेकर सवाल चर्चा में आ गये हैं। इन पर बहस होना चाहिए, ताकि लोगों को मालूम पड़े कि आखिरकार अखिल भारतीय सेवा के अफसर मोटी-मोटी रकम और सेवाओं का तो भरपूर आनंद उठाते हैं, लेकिन उसके एबज में विकास की दिशा में क्या कर हैं इसकी पड़ताल तो होनी ही चाहिए।
अफसर और उनकी संख्या :
- आईएएस अफसर - 5,000
- आईपीएस अफसर - 3,300
- आईएफएस अफसर - 2,100
अफसरों का नजरिया :
- जो अफसर काम नहीं करते हैं उन पर कार्यवाही होना चाहिए। - महेशचंद्र चौधरी, कलेक्टर छिंदवाड़ा।
- अधिकारियों के कर्त्तव्यों और अधिकारों की समीक्षा तो होना चाहिए। - गुलशन बामरा, कलेक्टर जबलपुर।
- हरसाल हमारे लक्ष्यों की समीक्षा होती है यह कोई नई बात नहीं है। - डॉ0 नवनीत कोठारी, कलेक्टर, खरगौन।
- अधिकारियों की सेवाओं का हर साल मूल्याकंन होता है। - अरूणा मोहन राव, एडीजी, भोपाल।
- अधिकारियों के हर पहलू पर ध्यान रखा जाना चाहिए। - संतोष कुमार सिंह, एसपी, जबलपुर।
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