मध्यप्रदेश प्राकृतिक संपदाओं के लिए जाना जाता है और इसकी प्राकृतिक संपदा का सबसे ज्यादा दोहन ठेकेदारों ने किया है, न तो राज्य एक कदम आगे बढ़ पाया है और न ही विकास के सौपान पर नयी राह पर चल पा रहा है। मध्यप्रदेश को बने हुए पांच दशक से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन सपनों के सौदागरों से आज भी राज्य के रहवासी छले जा रहे हैं। पिछले आठ सालों से संस्कृति विभाग राज्य में फिल्म सिटी खोलने के सपने दिखा रहा है, जमीन की तलाश में सालों गुजर गये अब रायसेन जिले में जमीन चिन्हित की गई है, लेकिन इससे पहले ही बॉलीबुड के छलिए राज्य के छप्पे-छप्पे में फैल गये हैं और वे सरकार को कोई कर का भुगतान किये बिना, अपनी फिल्मी की शूटिंग करके लाखों-करोड़ों कमा रहे हैं, पर मध्यप्रदेश को क्या मिल रहा है, इसका जबाव किसी के पास नहीं है। मध्यप्रदेश की प्राकृतिक खूबसूरती को कैमरों में कैद करके फिल्मों में दिखाया जा रहा है इसके साथ ही पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर को भी कैमरे में फिल्मों के जरिए कैद कर लिया है। निश्चित रूप से यह राज्य के लिए शुभ संकेत है कि एक नया व्यवसाय मिलने के संकेत मिलने लगे हैं पर राज्य सरकार को इस संबंध में गंभीरता से विचार कर सारी नीति निर्धारण करनी चाहिए, क्योंकि बॉलीबुड के कलाकार तो छलिया बाबू के नाम से जाने जाते हैं उनका मतलब निकल गया, तो फिर वह पहचानते नहीं। अभी तो उनके लिए मप्र हर स्तर पर एक बेहतर प्लेटफॉर्म साबित हो रहा है, क्योंकि यहां पर शूटिंग के लिए जो लोकेशन मिल रही है, उसका उन्हें पैमेंट नहीं देना पड़ रहा है, सब कुछ फ्री में हो रहा है। बॉलीबुड के निर्माता निर्देशकों को मप्र में भोपाल, रायसेन, पचमढ़ी, खजुराहो, ग्वालियर आदि स्थानों फ्री में मिल रहे हैं। इस बारे में संस्कृति विभाग को अब नींद से जाग जाना चाहिए। पिछले दो-तीन सालों में फिल्मे बनाने वालों की बाढ़ आ गई है। इसका श्रेय जाने माने निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा को जाता है। झा ने दो फिल्म भोपाल में शूट की और दोनों हिट रही। एक राजनीति और दूसरी आरक्षण। इन फिल्मों ने देशभर में धूम मचाई, विवाद खड़े हुए पर मप्र को क्या मिला । इस पर राज्य सरकार को विचार करना चाहिए। अब जुलाई के महीने में बॉलीबुड अभिनेता सुनील शेट्टी ने भोपाल मे ढेरा जमाया है, उनकी फिल्म 'मेरे दोस्त अभी पिक्चर बाकी है' के प्रमोशन के लिए भोपाल में हैं, उनके साथ अभिनेत्री उदिता गोस्वामी, साहवर अली खान एवं राकेश बेदी भी आये हैं। निश्चित रूप से कलाकारों का मप्र में बारबार आना शुभ संकेत है। इससे राज्य का मान सम्मान बढ़ा है, लेकिन ऐसी योजना बनाई जाये जिसमें राज्य का तो सम्मान बढ़े ही साथ ही साथ आय के स्रोत भी खुले और प्रदेश की प्रतिभा को विकसित करने का मौका मिले, तभी हम अपना हक पा सकेंगे।
''जय हो मप्र की''
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