समझ में नहीं आ रहा है कि मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार क्यों नहीं हो पा रहा है। बार-बार योजनाएं बन रही है, उन पर खूब हल्ला मच रहा है, इसके बाद भी परिणाम ढाक के तीन पात हो रहे हैं। भाजपा सरकार ने सरकारी स्कूलों में आमूल-चूल बदलाव के लिए कई बार मंथन-चिंतन भी किया। अलग-अलग व्यवस्थाएं बदली। शिक्षकों पर नकेल कसी , स्कूलों में पढाई का वातावरण बनाया, तब भी परिणाम सार्थक नहीं मिल पा रहे हैं। अब शिक्षा विभाग ने एक नया प्रयोग करने का इरादा बनाया है, इसके तहत सरकारी स्कूलों में बच्चों से ही पूछा जायेगा कि स्कूल में क्या क्या खामिया हैं और उन्हें किस तरह दूर किया जाये। परीक्षा परिणाम में कैसे सुधार आये। विभाग के आला अधिकारियों ने तय किया है कि बच्चों से ही उनकी पढाई के बारे में राय ली जाये। अब यह सवाल यहां उठता है कि अगर बच्चों को अपनी पढाई के बारे में अच्छे से मालूम हो तो फिर वे सरकारी स्कूलों में पढने ही क्यों जाये । विभाग के अधिकारी यह मान रहे हैं कि बच्चों से सीधे संवाद से निश्चित रूप से अच्छे परिणाम आयेंगे। अगर विभाग के अधिकारी प्राइवेट के स्कूलों के कार्यशैली का आंकलन करें तो पता चलेगा कि प्राइवेट स्कूल बच्चों की अपेक्षा अभिभावको से सीधा संवाद करते हैं और उन समस्याओं का निदान करने की पहल करते हैं। अभिभावको से लगातार प्राइवेट स्कूलों का संवाद चलता रहता है और अभिभावक ही अपने बच्चे के बारे में बेहतर ढंग से जानता है, लेकिन सरकारी स्कूलों में तो उल्टा ही हो रहा है, वह पहले बच्चो से बात कर रहे और अभिभावक को भूल गये हैं। धन्य हो मध्यप्रदेश का शिक्षा विभाग ।
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