क़षि परआधारित मध्यप्रदेश अर्थव्यवस्था को ताकत देने के लिए बार-बार योजनाएं बनती है। फाईलो से बाहर निकलकर बैठको तक पहुंचती है। मंथन, चिंतन और योजनाएं आकार लेती है। फील्ड पर पहुंचते ही योजनाएं डग-मांगाने लगती है और फिर शुरू होती है, नौकरशाही और बाबूओ की कला बाजियां, जिसके चलते क़षि विकास के जो सपने देखे जाते है, वह ध्वस्त होने लगते है। मध्यप्रदेश में यह आलम अरसे से चला आ रहा है, यही वजह है कि क़षि क्षेत्र में आज भी किसान, परेशान और बेहाल है और आत्महत्या को विवश हो रहा है। मध्यप्रदेश में पहली बार निराश किसानों ने मौत को गले लगाया। इससे पहले कभी किसानों ने आत्महत्या नहीं की है। किसानों की आत्महत्या पर खूब राजनीति हुई और सत्ता और विपक्ष उन किसान परिवारों को भूल गये, जो कि अब फिर से अपनी परेशानियों से जूझ रहे है। निश्चित रूप से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा खेती को लाभ का धंधा बनाने की है। इस दिशा में उन्होंने कई फैसले लिये है, पर अभी भी किसान को उसकी लाभ मूल्य की कीमत बाजार में नहीं मिल रही है, वहीं बिजली का संकट रोजाना बना हुआ है, सिंचाई की सुविधाएं बेहतर नहीं है, खाद बीज नकली मिल रहा है। अब मुख्यमंत्री ने क़षि कैबिनेट बनाई है, जो बारह विभागों को लेकर एक समिति है, जिसमें किसानों की जिंदगी में खुशहाली लाने पर विचार विमर्श किया जायेगा। क़षि से जुडे 12 विभागों का बजट अभी भी 32 प्रतिशत क़षि पर खर्च हो रहा है। अगले वर्ष 2012 से क़षि का अलग से बजट बनाने का सरकार विचार कर रही है। प्रदेश का कुल बजट 65845.63 करोउ है, जबकि क़षि समूह में सम्मिलित बजट 21617.41 करोड है। इसी राशि में से क़षि क्षेत्र में कार्य होना है। क़षि के जानकार सोमपाल शास्त्री को आशंका है कि क़षि को लेकर जो कवायद की जा रही है, कहीं वे रस्म अदायगी बनकर न रह जाये। यह सच है कि मध्यप्रदेश में लुभावने सपने दिखाने की कला में राजनेता माहिर है, ऐसे नेताओं की बेहद कमी है, जो कि सपने तो सुंदर देखते है, पर उन्हें साकार करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती है। इसी के चलते किसान दिन प्रतिदिन अपनी दशा पर आंसू बहाता रहता है और राजनेता वोट के हिसाब से किसानो का इस्तेमाल करता रहा है। पर अब स्थितियां बदल रही है, किसानों के बीच स्वयंसेवी संगठन पहुंच रहे है, जो कि लगातार सरकार और उनकी जिंदगी से जुडे पहलुओं को बता रहे है। यह अपने आप में एक शुभ संकेत है, इससे न सिर्फ खेती का भला होगा, बल्कि किसान भी जागरूक होगा और सरकार पर लगाम भी लग सकेगी। जय हो मध्यप्रदेश की ।
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