खाटी समाजवादी नेता शरद यादव को एक बार फिर मध्यप्रदेश की याद सताने लगी है। वे बार-बार राज्य की यात्रा कर अपने खत्म हो रहे संगठन को जिंदा करने की जुगत में लगे हैं। अब उन्होंने संगठन के हालात देखकर यह कहना भी शुरू कर दिया है कि जनता दल यू का गठन चुनाव लडने के लिए नहीं है, बल्कि जहां अन्याय, अत्याचार और शोषण होगा वहां पर जनता दल यू मौजूद रहेगा। अब शरद यादव जो भी कहे, उस पर विश्वास तो करना ही होगा, लेकिन मध्यप्रदेश की ओर से उन्होंने करीब दो दशक से मुंह मोड लिया था और इसकी वजह उनकी जबलपुर लोकसभा चुनाव में पराजय थी। चुनाव में पराजित होने के बाद यादव ने दिल्ली की ओर रूख किया और फिर पीछे पलट कर नहीं देखा।
मध्यप्रदेश की राजनीति में संभवत: शरद यादव इकलौते राजनेता है, जो कि मध्यप्रदेश के अलावा बिहार, उ0प्र0, हरियाणा जैसे राज्यों से चुनाव लडकर संसद में आक्रमक तेवर का प्रदर्शन करते हैं। इस राह पर कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह चले, लेकिन उन्होंने भी एक बार दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीता है और किसी नेता का उदाहरण मध्यप्रदेश में तलाश करने पर भी नहीं मिल रहा है। निश्चित रूप से शरद यादव पर फ्रक किया जा सकता है, लेकिन म0प्र0 के प्रति उनकी अनदेखी नागवार गुजरती है। 15 जून, 2011 को भोपाल के रविंद्र भवन में शरद यादव ने पार्टी सम्मेलन के कार्यक्रम में न सिर्फ अपनी राजनीतिक यात्रा का बखान किया, बल्कि यह भी स्थापित करने का प्रयास किया कि उन्होंने म0प्र0 के विकास के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोडी, इसके लिए उन्होंने एक लंबी फेहरिस्त कामों की कार्यकर्ताओं को गिनाई। यह सच है कि यादव इन दिलों एनडीए के संयोजक भी है, तो उनके भाजपा से निकट के रिश्ते भी हैं और भाजपा मध्यप्रदेश में सत्तारूढ दल है। ऐसी स्थिति में भाजपा से दूरिया बनाने का जौखिम यादव क्यों लेंगे, लेकिन यादव के शिष्य गोविंद यादव की पहल पर मध्यप्रदेश में जनता दल यू अपने पैर जमा रहा है और शरद यादव उसके पीछे ताकत से खडे है, इससे साफ जाहिर है कि शरद यादव की मंशा एक बार फिर राज्य की राजनीति में जाग गई है। वैसे तो राज्य की राजनीति में भारी परिवर्तन आ गया है। भाजपा और कांग्रेस में नये चेहरो के हाथों मे नेत़त्व है, राज्य के मुददे बदल गये है, शांतिप्रिय राज्य में राजनीतिक हलचले तेज होने लगी है, विकास पर बहस होने लगी है, आम आदमी सवाल करने लगा है, मीडिया हल्ला मचा रहा है, यानि सब तरफ बदलाव की बयार बह रही है, अब शरद यादव को तय करना है कि वह इस राजनीति में कहा अपने आप को पाते है।
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