मध्यप्रदेश के विकास में जब-जब केंद्र सरकार बाधा बनकर खड़ी होती है, तो राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बेचैनी होने लगती है। फिर वे गांधीवादी रास्ता अपनाने लगते हैं। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन करने का फैसला पहली बार नहीं किया इससे पहले भी दो बार अनशन कर चुके हैं और एक बार पूरी कैबिनेट के साथ दिल्ली में प्रदर्शन भी किया जा चुका है। अब इस बार गेहूं के लिए बारदाने नहीं मिलने के कारण संसद भवन में गांधी जी की प्रतिमा के सामने धरने पर बैठने का एलान किया है। निश्चित रूप से मप्र में इस बार समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी में फिर रिकार्ड टूटने का संकेत मिल रहा है। शुरूआती दौर में सरकार ने 55 लाख मीट्रिक टन गेहूं का लक्ष्य रखा था, लेकिन जिस तरह से मंडियों में गेहूं की आवक बढ़ी है उससे लगता है कि सरकार 65 लाख मीट्रिक टन तक गेहूं खरीद सकती है। अपार गेहूं खरीदी के बाद सरकार को बारदाने की सख्त जरूरत पड़ती है। इसबार प्रदेश की सरकार ने न सिर्फ गेहूं खरीदी का लक्ष्य बढ़ाया, बल्कि गेहूं के भंडारण की पुख्ता व्यवस्था भी की है। बारदाने के लिए केंद्र सरकार को 565 करोड़ एडवांस दिये जा चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने 37 लाख बारदाने अभी तक नहीं दिये हैं। मात्र 43 बोरे ही मिल पाये हैं। निश्चित रूप से अगर बोरे नहीं मिलेगे, तो गेहूं गोदाम तक कैसे पहुंचेगा यह एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। मप्र उन बिरले राज्यों में शुमार हो गया है, जहां पर गेहूं का उत्पादन रिकार्ड तोड़ रहा है। अब तो राज्य गेहूं खरीदी में भी हरियाणा, गुजरात, राजस्थान से आगे निकल गया है। यह एक शुभ संकेत है कि किसानों की मेहनत रंग ला रही है। मुख्यमंत्री एक बार फिर किसानों के मुद्दों को लेकर मैदान में उतर आये हैं।
गुरुवार, 26 अप्रैल 2012
मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
कहां तलाश करें बहुएं मध्यप्रदेश में
जीवन भर साथ निभाना |
सामाजिक तानाबाना तेजी से छिन्न-भिन्न हो रहा है, लोगों का नजरिया संकुचित हो रहा है, जिसका परिणाम परिवारों पर दिख रहा है। आलम यह हो गया है कि अब शादी के लिए बहुएं तलाश करने में लोगों को पसीना आ रहा है। इसकी वजह है लिंगानुपात में जमीन-आसमान का अंतर। इस समस्या से देश के कई राज्य जूझ रहे हैं और अब मप्र भी इसमें शामिल हो गया है। राज्य की भाजपा सरकार ने तो बेटी बचाओ अभियान छेड़ रखा है। राज्य के कई हिस्सों में लिंगानुपात में बड़ा अंतर है जिसके चलते लोगों को अपने घरों में बहुएं लाने के लिए पड़ौसी राज्यों की शरण लेनी पड़ रही है। यहां तक कि बहुएं खरीदकर लाई जा रही हैं। गरीब राज्य मप्र में शादियां आज भी समाज के सम्मेलनों के जरिए व्यापक स्तर पर होती है, क्योंकि कई परिवार तो शादियां करने की स्थिति में नहीं होते हैं। इसलिए उन्हें समाज का मंच स्वीकार करना पड़ता है। इस दिशा में भी राज्य सरकार ने भी कन्यादान जैसी महती योजना शुरू की है जिसके बेहतर परिणाम मिले हैं। इस योजना से अब तक गरीब दो लाख निर्धन कन्याओं के जीवन में सुहाग की लकीर खिच गई है। सरकार भी विवाह और ग्रहस्थी की शुरूआत के लिए 15 हजार रूपये मुहैया करा रही है। वैसे तो इस योजना का कई स्तरों पर विरोध भी हुआ है, लेकिन इसका समर्थन बहुत अधिक है। समाज का एक बड़ा तबका इस योजना के साथ खड़ा है, क्योंकि गरीब कन्याओं के विवाह के रास्ते सरकार ने खोल दिये है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना के जरिए अपने आपको गरीबों का मसीहा भी साबित करने की कोशिश की है।
परिचय सम्मेलन और शादियां :
आओ साथ रहे |
मध्यप्रदेश में दुल्हा-दुल्हन तलाश करने का मंच आजकल समाज के परिचय सम्मेलन भी हैं। समाज की सक्रियता का यह परिणाम है कि हर वर्ग का समाज परिचय सम्मेलन कर रहा है जिसमें मुख्य रूप से जैन समाज, अग्रवाल समाज, ब्राम्हण समाज, स्वर्णकार समाज, कतिया समाज, सिरवैया समाज सहित आदि अपने-अपने इलाकों में सम्मेलन करके शादियों के लिए दुल्हा-दुल्हन तलाश कर रहे हैं। इन समाज के कर्ता-धर्ताओं को एक चिंता सताने लगी है कि सम्मेलन में युवकों की अपेक्षा युवतियां कम आ रही हैं। यानि जिस परिचय सम्मेलन में 50 लड़के आते हैं वहां पर सिर्फ 25 लड़कियां आ रही है। इस चिंता को दूर करने के लिए अब परिचय सम्मेलनों में लोगों से बेटा-बेटियों के बीच कोई भेदभाव नहीं करने का शपथ पत्र भरवाया जा रहा है। निश्चित रूप से परिचय सम्मेलन एक सार्थक कदम तो है, लेकिन उनकी चिंता भी बाजिब है।
सोमवार, 23 अप्रैल 2012
सतीप्रथा खत्म फिर भी औरत को जलाना बंद नहीं हुआ मप्र में
महिला आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता शर्मा : निसंकोच होकर अपना दर्द बताओ |
सतीप्रथा पूरी तरह से खत्म तो नहीं हुई है, क्योंकि इसके कीटाणू आज भी प्रदेश के कई हिस्सों में कायम है, लेकिन इसके विपरीत महिलाओं को जलाना आज भी बादस्तूर मप्र में जारी है। महिलाओं को जलाने की घटनाएं अखबारों की सुर्खिया बनती रहती है, कभी दहेज उत्पीड़न के नाम पर महिलाओं को जलाया जाता है, तो कभी शारीरिक शोषण पर इंकार करने से महिला को आग के हवाले कर दिया जाता है। अब तो महानगरों की तरह महिलाओं के खूबसूरत चेहरों पर तेजाब फेंककर उन्हें विद्रूप किया जा रहा है। हाल ही में एक स्कूल टीचर पर तेजाब फेंका गया है। यह सच है कि नगर वधु प्रथा पूरी तरह खत्म है, लेकिन बलात्कार की घटनाएं बढ़ गई हैं इसके साथ ही अपहरण, तस्करी और ऑनर किलिंग ने महिला हिंसा को घिनौने रूप में सामने ला दिया है। यह सारी पीड़ाएं 22 अप्रैल को भोपाल में महिला आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता शर्मा के सामने महिलाओं ने जाहिर की। यहां तक कि टीकमगढ़ नगर पालिका की पार्षद रानी ने भी गुहार लगाई कि उन्हें नगर पालिका अध्यक्ष देहिक शोषण के लिए बार-बार दबाव बना रहा है। यह मामला भाजपा की कार्यसमिति की बैठक ओरछा में भी उठ चुका है। इसके साथ ही महिलाओं के शोषण और अत्याचार की ढेरों कहानियां आयोग के सामने बयां की गई। महिला आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता शर्मा की यात्रा ने राजनैतिक रंग भी ले लिया है, क्योंकि उनकी जनसुनवाई के दौरान मप्र महिला आयोग की अध्यक्ष और सदस्यों ने शिरकत नहीं की। आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता शर्मा का कहना है कि उन्होंने सबको बुलाया था। इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा कि मप्र महिला उत्पीड़न और अत्याचार में दूसरे नंबर पर है। वहीं दूसरी ओर मप्र महिला आयोग की अध्यक्ष उपमा राय का कहना है कि संवैधानिक पद पर बैठी महिला आयोग की अध्यक्ष को भोपाल में राजनीति नहीं करनी चाहिए। कुल मिलाकर महिला आयोग जिस मकसद से आया था उसमें कामयाब हो गया है, क्योंकि भाजपा सरकार के राज में महिलाओं की स्थिति उजागर करना उनका मकसद था।
महिलाओं ने यह मामले उठाये :
- भोपाल दुग्ध संघ में कार्यरत यामिनी गिरी ने कहा कि अधिकारी मुझे रात में फोन कर बुलाते हैं और अनैतिक काम करने के लिए दबाव बनाते हैं।
- लोग शिक्षण संचालनालय में कार्यरत रेणु गुलाटी ने कहा कि अवकाश के दिन एक अफसर ने मुझे आफिस बुलाया और मेरे साथ छेड़खानी भी की गई।
- मंदसौर की महिला ने कहा कि सालभर पहले गांव के दबंगों ने बलात्कार किया, लेकिन आज तक रिपोर्ट नहीं लिखी गई। पति ने भी साथ छोड़ दिया है।
- भोपाल की महिला अंजू चौहान ने कहा कि कोख में एक महीने का बच्चा था, फिर भी सरकारी जेपी अस्पताल में मेरी नसबंदी कर दी गई अब डॉक्टर धमकी दे रहे हैं कि 30 हजार रूपये लेकर बच्चे को गिरा दो बरना जान से जाओंगी।
रविवार, 22 अप्रैल 2012
मिशन 2013 फतह के लिए भाजपा तलाश रही रास्ते मप्र में
जोशी जी आप सही फरमा रहे : यह बात पूर्व सांसद विक्रम वर्मा ने एक बैठक में कही |
भाजपा नेता चिंतन, मंथन और बैठकों के लिए जाने जाते हैं। कोई भी बड़ा मुद्दा सामने आया तो भाजपा के नेता उस पर घंटों चिंतन, मंथन करते हैं और फिर जो निष्कर्ष निकलते हैं उस पर अमल भी करते हैं। फिर भले ही जनता उसे स्वीकार करें अथवा नहीं। भाजपा नेताओं को यह बीमारी संघ परिवार से लगी है। संघ परिवार चिंतन, मंथन में ही डूबा रहता है। इसको ग्रहण करने में भाजपा ने कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी। मप्र में विधानसभा चुनाव में मात्र अब डेढ़ साल का समय बाकी है पर भाजपा अभी से मिशन 2013 फतह करने के लिए हरसंभव प्रयास करने में जुट गई है। कार्यसमिति की बैठकें हर तीन महीने में हो रही है। संगठन और सरकार में तालमेल बनाये रखने के लिए कौर ग्रुप की बैठकें भी लगातार हो रही हैं। इन बैठकों में एक चेहरा अचानक फिर से सक्रिय हुआ है। इस पर मुख्यमंत्री को बेहद विश्वास है यह चेहरा है भाजपा के महामंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का। तोमर अचानक मप्र की राजनीति में फिर से सक्रिय हो गये हैं। मप्र की राजनीति में अभी तक मुख्यमंत्री चौहान का एक छत्र राज भाजपा में कायम है। बीच-बीच में प्रभात झा अपनी ताकत का प्रदर्शन भी कर रहे हैं, लेकिन फिर भी भाजपा में नौ साल बाद भी कोई गुटबाजी फिलहाल तो नहीं है। थोड़ी बहुत नाराजगी और गुस्सा होना स्वाभाविक है। भविष्य की योजनाएं पार्टी बना रही है। सरकार अपने स्तर पर लगातार सक्रिय है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं है। विपक्ष सरकार की खामियों पर हमले कर रहा है। अवैध उत्खनन और भ्रष्टाचार तथा बिगड़ी कानून व्यवस्था एक बड़े मुद्दे राज्य में बन गये हैं, इनको लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने अपनी चिंता जाहिर की है। अब इस पर कितना अमल हो पाता है यह तो भविष्य ही बतायेगा, लेकिन फिर भी नेताओं ने अपना फर्ज अदा कर दिया है अब इस पर निर्णय सरकार और संगठन को करना है।
शनिवार, 21 अप्रैल 2012
अफसरों के मंथन पर भी अमृत क्यों नहीं निकल रहा मप्र में
बताओ विभाग में क्या नया चल रहा : यह सवाल मुख्यमंत्री चौहान ने अधिकारियों से पूछा |
मध्यप्रदेश की छवि को देश के अन्य राज्यों के सामने चमकाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिल में आग तो बहुत है और वे बार-बार अपने भाषणों में भी जिक्र करते हैं। विकास के नये आयमों को स्थापित करने के लिए अधिकारियों से लगातार मंथन करते हैं, उस पर मंत्रियों से फीडबैक लेते हैं, फील्ड की कमान स्वयं संभाल रखी है, वे हर दिन गांव और सड़कों पर दौरा करते हैं, सरकारी कार्यक्रमों में लाडली लक्ष्मी और कन्यादान योजनाओं का बखान करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं, इसके बाद भी मध्यप्रदेश का विकास जस का तस क्यों है यह रहस्यमय है। हाल ही में जनगणना की एक रिपोर्ट जारी हुई है जिसमें मप्र में सबसे कम बुनियादी सुविधाएं देने वाला राज्यों में शामिल हो गया है। नागरिकों को आज भी शौचालय और शुद्व पानी नहीं मिल रहा है। यह जरूर है कि सीएम ने मुख्यमंत्री पेयजल योजना और मर्यादा अभियान चलाया हुआ है जिसमें हर गांव में शौचालय बनाने का लक्ष्य है। चौहान की तमन्ना है कि मप्र स्वर्णिम राज्य बने, लेकिन प्रदेश में पिछले छह महीने के दौरान जो घटनाएं सामने आई है, जिससे राज्य का विदुप चेहरा सामने आया है। आईपीएस की हत्या हो जाना, तहसील पर जेसीबी चलाने जैसी घटनाएं अब आम होती जा रही है। माफिया ने हर क्षेत्र में अपना ढंका बजा रखा है, उनके सामने पुलिस और व्यवस्था लाचार और असहाय हो गई है। इससे पहले कभी माफिया इतना ताकतवर राज्य में नहीं रहा है। वही दूसरी ओर यह भी सच है कि मुख्यमंत्री बार-बार लोगों को यह विश्वास दिलाते रहते हैं कि माफिया को जड़मूल से खत्म किया जायेगा। इसके बाद भी माफिया पनपता जा रहा है।
मंथन पर अमृत क्यों नहीं निकल पा रहा :
मुख्यमंत्री चौहान लगातार फील्ड में दौड़ रहे हैं, अफसरों के साथ मंथन कर रहे हैं, आधी-आधी रात तक बैठकों का दौर चल रहा है। इसके बाद भी अमृत क्यों नहीं निकल पा रहा है। विभागों की योजनाएं सड़कों से गायब है, हर विभाग में भ्रष्टाचार की कहानियां कभी भी अखबारों की सुर्खिया बनती रहती हैं। अधिकारी और कर्मचारी फील्ड में जा नहीं रहे हैं। कितना दुखद है कि करोड़ों रूपया सरकारी विभाग के हर साल लैप्स हो रहे हैं उस राशि का कोई उपयोग नहीं हो रहा है। जमाना तेजी से बदल रहा है, लेकिन सरकारी विभाग आज भी अपनी ही रफ्तार से चले जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप विभागों का अस्तित्व संकट में आ गया है। विभागों की योजनाएं अगर जनता तक नहीं पहुंच पा रही है, तो यह कहीं न कहीं सरकार की असफलता तो है, इस दिशा में भी विचार करने की आवश्यकता है कि आखिरकार हम कहा असफल हो रहे हैं।
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