यूं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी राजनीति में किसी प्रकार के टकराव को पसंद नहीं करते हैं और बीच का रास्ता निकालकर राजनीति करते हैं, तो फिर प्रदेश के राज्यपाल से उनके टकराव की बात बेमान लगना स्वाभाविक है। इसके बाद भी जुलाई महीने में जो पस्थितियां राजभवन और सरकार के बीच अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पैदा हो गई हैं उससे साफ जाहिर है कि भविष्य में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव हो सकता है। सावधानी दोनों तरफ से बरती जा रही है। मध्यप्रदेश के संसदीय इतिहास में पहली बार राज्यपाल रामनरेश यादव ने 26 जुलाई, 2013 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर विधानसभा सत्र आहूत करने के निर्देश दिये हैं। इस पत्र के साथ ही प्रदेश की राजनीति चरम पर पहुंच गई है। फिलहाल तो मुख्यमंत्री चौहान और उनका सचिवालय इस पत्र को लेकर विचार-मंथन कर रहा है। राज्यपाल यादव ने पत्र भेजकर लोकतंत्र का भरोसा मजबूत करने का एक मार्ग खोला है पर सरकार इतनी आसानी से इस पत्र पर सहमत नहीं होगी और न ही सत्र बुलायेगी। इस संबंध में विचार विमर्श का दौर जारी है। अब यह तय हो चुका है कि अगर सरकार सत्र बुलाती है, तो उसकी जग हंसाई होनी है और अगर वह नहीं बुलाती है, तो वह मजाक की पात्र बनती है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के लिए राज्यपाल का पत्र गले की फांस बन गया है। अभी यह तय होना है कि यह पत्र मुख्यमंत्री कैबिनेट के समक्ष ले जायेंगे अथवा स्वयं ही निर्णय लेंगे। फिलहाल तो मुख्यमंत्री अपने पसंदीदा नौकरशाहों से इस पत्र पर विचार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे एक पेज की एक चिट्ठी में राज्यपाल ने नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह द्वारा उन्हें सौंपे गये ज्ञापन का उल्लेख किया है। पत्र में संविधान के किसी भी अनुच्छेद का हवाला नहीं दिया गया है। दूसरी ओर संविधान और संसदीय मामलों के विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि विधानसभा अध्यक्ष ने सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया है। राज्यपाल ने अभी तक सत्रावसान की अधिसूचना पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इसलिए अगर राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखित संदेश भेजा है, तो सरकार उसे स्पीकर को भेजेंगी। राज्यपाल को अधिकार है कि वह सदन के किसी भी मामले में संदेश भेज सकते हैं। ऐसे में अविश्वास पर चर्चा हो सकती है। मुख्यमंत्री चाहे तो इसको कैबिनेट में भी ले जाकर विशेष सत्र आहूत करने पर विचार कर सकते हैं। दूसरी ओर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र तिवारी का मानना है कि संविधान के अनुच्छेद 168-174 में दी गई सुस्पष्ट व्यवस्था के तहत राज्यपाल को विधानसभा नियंत्रित करने की शक्ति हासिल है। इसके तहत वे मॉनिटरिंग करते हुए विधानसभा का सत्र बीच में भंग करने, विशेष सत्र आहूत करने या प्रतिकूल परिस्थिति में विधानसभा भंग करने में भी समर्थ है। ताजा घटनाक्रम में प्रदेश के राज्यपाल ने जो पत्र जारी किया है, वह संवैधानिक मर्यादा के अनुकूल है और स्वस्थ्ा लोकतांत्रिक परंपरा के तहत उसका तत्काल पालन करना चाहिए। वही पूर्व विधानसभा अध्यक्ष यज्ञदत्त शर्मा का कहना है कि राज्यपाल ने चिट्ठी नहीं लिखी है, बल्कि आदेश दिया है। सरकार और विधानसभा के लिए यह आदेश बंधनकारी है। संवैधानिक रूप से राज्यपाल सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न है, वे निर्देश दे सकते हैं, सरकार को चाहिए कि वे राज्यपाल के आदेश का पालन करें। राज्यपाल के आदेशों की अवहेलना भविष्य में संवैधानिक संकट खड़ा कर सकती हैं और राज्यपाल अपनी प्रतिकूल रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप सकते हैं। इन संकेतों से साफ जाहिर है कि भविष्य में सरकार और राज्यपाल के बीच संवैधानिक संकट खड़े होने के आसार प्रबल हो गये हैं। सरकार का जो रूख प्रारंभिक तौर पर सामने आ रहा है उससे लगता है कि सरकार विशेष सत्र आहूत नहीं करेगी। फिर भी परिस्थतियां क्या होगी। यह अभी संभव नहीं है।
कांग्रेस को मिली नई ताकत :
विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने 11 जुलाई, 2013 को विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होने से पहले विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के पाला बदलने से बनी स्थिति के बाद सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया था। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने 12 जुलाई को नियमों के तहत अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए आवेदन दिया था जिसे विधानसभा ने स्वीकार कर लिया था। यहां तक कि विधानसभा की कार्यसूची में भी उसका उल्लेख था। विधानसभा में बदली परिस्थतियों के चलते सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। इसके बाद 12 जुलाई को नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन में शिकायत की थी कि सरकार ने विधानसभा के नियमों और प्रक्रियों के विपरीत सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है। राज्यपाल ने अपने इस पत्र लिखे जाने से पहले कई विशेषज्ञों से चर्चा की है। मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, संसदीय कार्य मंत्री और दिल्ली में कई दिग्गज नेताओं से राज्यपाल की चर्चा हुई है। इसके बाद ही सत्र को आहूत करने के लिए पत्र लिखा गया है। इस पत्र के जारी होने से कांग्रेस विधायक दल को एक नई ताकत और ऊर्जा मिली है। अब भविष्य में देखना यही है कि राज्यपाल के पत्र के बाद सरकार क्या निर्णय लेती है।
''मप्र की जय हो''
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