गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

मध्‍यप्रदेश में असंतुलित विकास से पनप रहा असंतोष

         असंतुलित विकास के पहिए ने मध्य‍प्रदेश में भीतर ही भीतर असंतोष का पहिया तेजी से घूम रहा है। महानगरों और शहरों की चमक के सामने गांव फीके और असहाय नजर आते हैं। जहां एक ओर विकास का पैमाना समान रूप से स्‍थापित करने के सपने तो दिखाये जा रहे हैं,लेकिन उनमें भी हमारे-तुम्‍हारे की भावना प्रबल हो रही है। इसके चलते विभिन्‍न इलाकों में ऐसी समस्‍यायें जन्‍म ले रही है,जो कि भविष्‍य में विकराल रूप ले सकती हैं। असंतुलित विकास में नेत़त्‍व कर्ताओं की अहम भूमिका है,जो कि अपने नजरियें से विकास के पैमाने तय नहीं कर रहे हैं,बल्कि कहीं ओर से संचालित हो रहे हैं,इसके फलस्‍वरूप बुनियादी सुविधाएं तो नागरिकों को मिल ही नहीं रही है, बल्कि बिजली की आंख मिचौली और उबड-खाबड सडकों से दिन-प्रतिदिन रूबरू होना पड रहा है। इसके साथ ही शहरों और गांवों के बीच नवपूंजीवाद तेजी से पनपा है,जो कि शोषण की सारी सीमाएं लांघ रहा है,जिसके फलस्‍वरूप पलायन का ऐसा खेल शुरू हुआ है,जो कि मनरेगा जैसी योजनाएं भी रोक नहीं पा रही है। असंतुलित विकास के पीछे का मूल कारण राजनेताओं को माना जाता है,लेकिन कही-कही उन बुद्विजीवियों और समाजसेवियों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि वे समान विकास की पैरवी क्‍यों नहीं कर रहे हैं। विकास में जमीन आसमान का परिवर्तन किसी भी शहर और कस्‍बे में मध्‍यप्रदेश में देखा जा सकता है। यह सच है कि निजी संस्‍थाऐं तेजी से अपने पांव पसार रही है,जो कि अपने हिसाब से लोगों को सपने बेच रहे हैं। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि मप्र में आर्थिक विकास थम सा गया है। रोजगार तो नादारद ही हैं।

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