मिशन 2013 को फतह करने के लिए भाजपा और कांग्रेस टिकटों पर कोई एक महीने से मंथन व चिंतन कर रही है। इसके बाद भी टिकटों पर कलह मची हुई है। न तो भाजपा अपनी सूची फायनल कर पा रही है और न ही कांग्रेस सूची पर कोई निर्णय कर पा रही है। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस में तो टिकटों की लड़ाई दिल्ली तक पहुंच गई है। कांग्रेस ने 200 सीटों पर मंथन करने के बाद केंद्रीय चुनाव समिति को नाम सौंप दिये थे पर 28 अक्टूबर को दिल्ली में केंद्रीय चुनाव समिति के समक्ष फिर टिकटों में नामों को लेकर कलह सामने आई तो सोनिया गांधी खफा हो गई और उन्होंने एक बार फिर से सारी टिकटों पर विचार करने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी को फरमान दे दिया। इस पर कांग्रेस के नेताओं के पैरों तले से जमीन खिसक गई। जिन नेताओं ने खासी मशक्कत करके अपने समर्थकों के नाम जुड़वाये थे अब उन्हें नये सिरे से जोर लगाना पड़ेगा। यही वजह है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया को रात्रि में ही सोनिया गांधी से मिलकर सफाई देनी पड़ी। सत्तारूढ़ दल भाजपा में भी टिकटों को लेकर मारामारी मची हुई है। भाजपा में सर्वे, फीडबैक, समीक्षा, जमीनी हकीकत आदि का आकलन करने के बाद 230 नाम तय कर लिये थे पर 28 अक्टूबर से शुरू हुई चुनाव समिति की बैठक में नये सिरे से फिर 230 उम्मीदवारों पर बहस शुरू हुई है। उम्मीद की जा रही है कि 29 तारीख को इन पर मुहर लग जायेगी और सारे नामों को भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति को भेज दिये जायेंगे। सिर्फ बसपा और सपा ही ऐसे दल हैं जिन्होंने अपने आधे से अधिक उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं।
भाजपा फिर चर्चाओं का दौर :
भाजपा मिशन 2013 फतह करने के लिए उम्मीदवारों के चयन पर नये सिरे से 28 अक्टूबर को फिर मंथन भोपाल में कर रही है। अभी तक भाजपा की तिकड़ी चौहान, तोमर, मेनन ने 230 सीटों के उम्मीदवार एक हफ्ते की मशक्कत के बाद तैयार कर लिये थे अब चुनाव समिति नये सिरे से इन नामों पर विचार कर रही है। भाजपा के प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार कह चुके हैं कि 230 सीटों पर 29 अक्टूबर को चुनाव समिति अपनी मुहर लगा देगी, फिर इन नामों पर केंद्रीय चुनाव समिति में विचार किया जायेगा। यह सच है कि भाजपा में भी करीब 60 से अधिक नामों पर भारी उलझनें हैं। ये नाम मंत्री और विधायक हैं जिनके टिकट कांटे जाने हैं। 100 नाम बामुश्किल सिंगल सूची में है, बाकी नामों पर मशक्कत चल रही है। इस बार चुनाव समिति में जातिगत समीकरण के आधार पर नेताओं का चयन नहीं हुआ है, बल्कि पार्टी नेताओं ने अपने-अपने पसंद के नेताओं को शामिल किया है। यूं तो प्रभात झा ने जो समिति बनाई थी उसमें दो-चार नामों को छोड़कर बाकी नाम यथावत हैं। यही समिति अब विधानसभा टिकटों के दावेदारों पर नये सिरे से मंथन कर रही है। उम्मीद की जा रही है कि दीपावली तक भाजपा की सूची मार्केट में आ जायेगी।
कांग्रेस में फिर नये सिरे से मंथन :
लगभग यह तय हो गया था कि कांग्रेस 28 अक्टूबर को 50 से 80 सीटों के बीच कभी भी एलान कर सकती है। जैसे ही केंद्रीय चुनाव समिति के समक्ष नामों की सूची पहुंची तो फिर विवाद गहरा गया। इस पर सोनिया गांधी खासी नाराज हुई। अब कांग्रेस में स्क्रीनिंग कमेटी नये सिरे से नामों पर विचार करेगी। दिलचस्प यह है कि जो नेता पुत्र टिकट के लिए बेताब हैं उनके भविष्य का निर्णय स्वयं सोनिया गांधी करेगी। यह तय हो गया है कि वर्तमान कांग्रेस विधायकों को टिकट दे दिया जाये। यहां भी 30 अक्टूबर अथवा 1 नवंबर को बाद ही टिकटों की घोषणा होने के आसार हैं। फिलहाल तो नामों पर खासी मशक्कत मची हुई है। बमुश्किल 120 सीटों पर ही सहमति बन पाई है, बाकी सीटों पर बहुत टकराव है। कांग्रेस में दिग्गज नेता अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए बेताब जरूर है पर वे लगातार आलाकमान की निगाह में भी आ गये हैं इस वजह से भी टिकट का फैसला लगातार उलझता जा रहा है।
बसपा और सपा ने मैदान मारा :
प्रदेश में बसपा और सपा ने ही अभी तक चुनिंदा क्षेत्रों के उम्मीदवारों का एलान कर दिया है। हाथी और साइकिल अपने-अपने इलाकों में कदमताल भी कर रहे हैं। बसपा और सपा को फिलहाल तो कांग्रेस और भाजपा से बगावत करने वालों का भी इंतजार है ताकि वे अपने दल में उन्हें शामिल करके टिकट दे सकें। बसपा इस बार सरकार बनाने के मूढ़ में है। यही वजह है कि सोच-सोचकर टिकटों पर निर्णय लिया जा रहा है। सपा में टिकटों पर विचार तो हो रहा है, लेकिन वे अपने अंदाज में किले जीतने के लिए बेताब हैं। जदयू और गोंगपा ने भी अपने उम्मीदवार तय से कर लिये हैं। इन दोनों दलों का चुनावी गठबंधन हैं।
बाजी किसके हाथ में :
टिकटों को लेकर दोनों दल गंभीर हैं। ये सच है कि अब कांग्रेस और भाजपा की शीर्षस्थ नेता यह मान चुके हैं कि साफ सुथरे उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जाना चाहिए, तभी मैदान मारा जा सकता है। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस खासी मशक्कत कर रहे हैं। इसके बाद भी नाम तय नहीं हो पा रहे हैं। सत्ता की चाबी किसके हाथ में रहेगी अभी यह कहना तो मुश्किल हैं, लेकिन भाजपा के किले में कदम-कदम पर कांटे ही कांटे बिछे हुए हैं। हाल यह हो गया है कि मंत्रियों के साथ-साथ विधायकों का भी क्षेत्र में खासा विरोध हो रहा है। लंबे समय बाद भाजपा के विधायक अपने क्षेत्र में विरोध का सामना कर रहे हैं। इस वजह से भाजपा विचलित है, क्योंकि पार्टी कार्यालय में तो विरोध हो ही रहा है पर अब विधायकों के क्षेत्र में भी कार्यकर्ताओं ने पुतला जलाना शुरू कर दिया है। अभी कांग्रेस का विरोध सड़कों पर नहीं आया है, लेकिन नाराजगी यहां भी बरकरार है। महानगरों में टिकटों को लेकर अभी से कांग्रेस नेता जहां-तहां विरोध करने लगे हैं। कुल मिलाकर मिशन 2013 फतह करना हर दल के लिए मुश्किल लग रहा है। यही वजह है कि वह टिकटों पर जोर दे रहे हैं।
''मध्यप्रदेश की जय हो''
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