सत्ता की लड़ाई का एक पाठ पूरा हो गया है। अब दूसरे पाठ में मतगणना होनी है जिसमें साबित हो जायेगा कि सत्ता का सहरा किसके सिर बंधेगा। इसके लिए राजनेताओं ने पिछले दो तीन महीनों से रात दिन एक कर दिया। मप्र में दस सालों से भाजपा का राज है तो स्वाभाविक रूप से भाजपा फिर से सत्ता पाने के लिए बेताब है ही, तो कांग्रेस भी दस साल का वनवास भोगकर अब सत्ता के लिए लालायित है। कांग्रेस और भाजपा अपने गुणा भाग में तो लगे ही हैं, लेकिन इनके सपनों की दुनिया को रोकने के लिए हाथी भी अपनी चाल से तेज चल गया है। हाथी इस बार दंभ से कह रहा है कि सत्ता की स्ट्रीग सीट पर तो वही बैठेगा और वही तय करेगा कि उसे पीछे कौन आयेगा। फिलहाल तो मतगणना आठ दिसंबर को होनी है इससे पहले राजनीतिक दल अपने गुणा भाग में लगे हैं। वोट प्रतिशत के आधार पर गणना की जा रही है, प्रत्याशियों में बेचैनी है। किसी प्रत्याशी को प्रशासन पर विश्वास नहीं है, तो स्ट्रांग रूम के सामने धुनी जमाकर बैठ गया है। यह काम धार जिले में कांग्रेस के विधायक और प्रत्याशी प्राचीलाल मीणा कर रहे हैं, जो कि ईवीएम मशीन स्ट्रांग रूम में आने के बाद से सामने ही बैठ गये हैं। इसी प्रकार जबलपुर में भी कांग्रेस के तीन उम्मीदवारों ने स्ट्रांग रूम के सामने अपना तंबू गाढ़ दिया था। प्रशासन की समझाईश के बाद अब उनके प्रतिनिधि स्ट्रांग रूम के सामने बैठेंगे। इस घटना से यह आभास होता है कि कांग्रेसियों में किस कदर अविश्वास की भावना घर कर गई है। उन्हें विश्वास ही नहीं है कि प्रशासन की कड़ी निगरानी में ईवीएम मशीनें रखी हुई हैं और उसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है, लेकिन कांग्रेसियों को लगता है कि शिवराज सरकार फिर से राज्य पर काबिज होने के लिए ईवीएम मशीन भी बदल सकती है। मतदान के दौरान कांग्रेस ने यह सवाल भी तेजी से उठाया है कि जब आम मतदाता मतदान कर रहा था तो उसमें एक अजीब किस्म की आवाज सुनाई दे रही थी। इसकी शिकायत चुनाव आयोग को कर दी गई है। भाजपा को इस सब पर कोई अविश्वास नहीं है और उनके उम्मीदवार एवं नेता चैन की नींद सो रहे हैं, वे यह मानकर चल रहे हैं कि अगली सरकार भाजपा की ही मप्र में बनने वाली है। मुख्यमंत्री चौहान बार-बार कह चुके हैं कि तीसरी बार फिर भाजपा की सरकार बन रही है, तो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी कह रही है कि भाजपा को 150 सीटें मिलेगी। उनके इस विश्वास के पीछे प्रचार अभियान के दौरान मिला फीडबैक है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के नेता भी बहुमत की बात न कर रहे हो। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह 110 से लेकर 120 सीटें कांग्रेस को मिलने का दावा कर रहे हैं, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया 150 सीटें मिलने का दावा कर रहे हैं। चुनाव अभियान समिति के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया सीटों के गुणा भाग तो नहीं बता रहे हैं, लेकिन वे कह रहे हैं कि सरकार तो कांग्रेस की ही बन रही है। कांग्रेस और भाजपा के इस अतिविश्वास के बाद सट्टा बाजार भी अपनी अपनी चाले चल रहा है। कभी सट्टा बाजार भाजपा को सिर आंखों पर बैठा रहा है, तो कभी कांग्रेस की सरकार बनवा रहा है। हर राजनेता बेचैन और परेशान है। ये परेशानियां उसकी भावनाओं में व्यक्त भी हो रही है, क्योंकि परिणाम आने में 8 दिसंबर का समय काफी लंबा है। ऐसी स्थिति में राजनेताओं को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिरकार वे करें तो क्या करें। कई कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता राजस्थान और दिल्ली में प्रचार अभियान में शामिल होने के लिए चले गये हैं, लेकिन वहां भी उनका मन बार-बार मप्र की तरफ ही लग रहा है। निश्चित रूप से इस बार मप्र के विस चुनाव परिणाम राज्य की राजनीति का भविष्य तय कर देंगे। जो भी परिणाम आयेंगे उससे एक दल को तो स्वाभाविक रूप से झटका लगना तय है। यह भी हो सकता है कि प्रदेश में मिली जुली सरकार का एक नया प्रयोग देखने को मिले। फिलहाल तो परिणामों को लेकर कायसबाजी थम नहीं पा रही है। नित प्रति नये-नये तर्क और कुतर्क रचे जा रहे है।
''मप्र की जय हो''