दलित युवक का घोड़े पर न बैठना :
प्रदेश में आज भी दलितों को द्विम दर्ज का माना जाता है। यही वजह है कि कई हिस्सों में उन्हें न तो मंदिरों में प्रवेश मिल पा रहा है और न ही शादी के दौरान घोड़े पर बैठ पाते हैं। कई इलाकों में तो आज भी बदतर स्थिति यह है कि सवर्णों के घर के सामने से जब दलित परिवार के लोग निकलते हैं, तो हाथों में चप्पल लेकर निकलना पड़ता है। अगर वे चप्पल पहनकर निकल जाये, तो यह सवर्णों की शान के खिलाफ है। इसी प्रकार सवर्णों को यह भी नागवार गुजरता है कि कोई दलित युवक की जब शादी हो, तो वह घोड़े पर संवार होकर गांव से न निकले, पर बदलते समाज में ऐसे दलित युवक सामने आ रहे हैं, जो कि न सिर्फ घोड़े पर बैठकर बारात निकाल रहे हैं, बल्कि सवर्णों को चुनौती भी दे रहे हैं, फिर भले ही इसके लिए उन्हें पुलिस का सहारा न लेना पड़े। दलित युवकों को घोड़े पर न बैठने से रोकने की परंपरा आज भी मंदसौर, नीमच, राजगढ़, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, पन्ना, सतना, रीवा आदि जिलों में कायम हैं। कहीं-कहीं दलित युवक विरोध में सामने भी आ रहे हैं।
दलित दूल्हे की बारात पर पथराव :
मई माह में दो घटनाएं हुई हैं जिसमें दलित युवक को घोड़े पर बैठने से रोका गया है। पहली घटना 6 मई, 2013 की है जिसमें नीमच जिले के मनासा थाना अंतर्गत ग्राम सेमली इस्तमुरार में दलित बारात को रोकने का प्रयास किया गया और जब दलित युवक घोड़े पर बैठकर गांव से बिन्दोली निकाल रहा था, तब सवर्णों ने अपने घरों की छतों से उस पर पथराव किया। इस पथराव के दौरान 4-5 लोग घायल हो गये, जिनमें नर्मदा बाई पति जगदीश मेगवाल, नौदराम पिता रामनिवास को गहरी चोटे आई हैं। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस को एक दिन पहले दलित परिवारों ने कुकड़ेश्वर थाने में लिखित आवेदन दे दिया था कि उनकी बारात को सवर्ण वर्ग रोकेंगे, जिस पर पुलिस तैनात की गई, लेकिन पुलिस की मौजूदगी में ही सवर्णों ने दलित युवक की बारात पर पथराव किया। अब पुलिस ने 4 आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया है, लेकिन फिलहाल आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। इसी प्रकार दूसरा मामला 8 मई, 2013 का है, जो कि श्योपुर जिले से संबंधित हैं। इस इलाके में जब दलित युवक अपनी बारात घोड़े पर बैठकर निकाल रहा था, तब सवर्णो ने अचानक बारात पर हमला बोल दिया। मामला पुलिस तक पहुंचा, पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। उसमें चौंकाने वाली बात यह है कि जब बारात निकल रही थी, तब सवर्णों ने जबरन दलित युवक को घोड़े से उतार दिया। जिस पर भारी विरोध हुआ और मारपीट की नौबत तक बन गई। दुखद पहलू यह है कि प्रदेश में ऐसी घटनाएं नित-प्रति हो रही हैं। न तो सामाजिक कार्य करने वाले संगठन इस दिशा में कोई कार्य कर पा रहे हैं और न ही राजनीतिक दल इसका तीव्र विरोध करते हैं। यही वजह है कि सवर्णो को ताकत मिलती है और वे दलित युवकों की बारात तक रोकने की हिम्मत जुटा लेते हैं। ऐसा नहीं है कि एक-दो घटनाएं होती हैं। हर साल ऐसी घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। फिर भी प्रशासन भी इस दिशा में न तो सजग है और न ही सक्रिय है। जिसका परिणाम दलित युवक जीवन भर भोगता है। फिर भी राज्य सरकार बार-बार अपना दलित प्रेम दर्शाती है, लेकिन जब दलितों पर उत्पीड़न और अत्याचार हो रहे हैं उसे रोकने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। यही वजह है कि आज भी मप्र में दलित युवकों को घोड़े से नीचे उतारने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही है और हम सब मौन रहकर दर्शक की भांति ऐसी घटनाओं के साक्षी बन रहे हैं, जो कि हमारे लिए न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण हैं, बल्कि दुखद भी है।
''मप्र की जय हो''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG