पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण कला पर कौन मोहित नहीं हुआ है। उनके उदारवादी चेहरे ने भाजपा से दूर भागते दलों को न सिर्फ पास लाया, बल्कि केंद्र में सत्ता भी दिलार्इ। अटल जी के सामने भाजपा में सारे नेता फीके हैं, वे जिस अंदाज से सभाओं में भाषण करते हैं और तालिया बजवाते हैं उसका तो भारतीय राजनीति में फिलहाल कोई विकल्प ही नहीं है। उनके वे मारक तीर जो कि वे सभाओं में चलाया करते थे, उनकी बार-बार राजनेता याद करते हैं।
अटल जी का मध्यप्रदेश की राजनीति से गहरा निकट का रिश्ता रहा है। वह राज्य के हर हिस्से से बाकिफ हैं। उन्होंने दो बार विदिशा और ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। ग्वालियर उनके लिए न सिर्फ कर्मभूमि रही, बल्कि परिवार का भी रिश्ता बना रहा। पिछले लंबे समय से वे अस्वस्थ हैं और राजनीति से दूर-दूर तक किनारा कर लिया है पर आज भी उन्हें भाजपा तो भूल ही नहीं पा रही है, बल्कि कांग्रेंस नेता भी जहां-तहां याद कर ही लेते हैं। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने अटल जी के नाम पर हिन्दी विश्वविद्यालय खोला और भी कई संस्थानों के नाम रखे हैं। हाल ही में नदी जोड़ योजना के तहत क्षिप्रा लिंक परियोजना शुरू हुई है। यह योजना भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के कार्यकाल में शुरू हुई थी जिसे एनडीए सरकार भूल गया। अचानक कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को फिर अटल जी याद आ गये हैं। उन्होंने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि लोकसभा में विपक्ष ओर भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री पद के लिए बिल्कुल फिट हैं। यही नहीं सुषमा जी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह है जिन्हें सारे दलों ने स्वीकार किया था। भाजपा में वाजपेयी के बाद यदि कोई उदारवादी चेहरा है, तो वह सुषमा जी ही है, जो अन्य दलों को स्वीकार हो सकती है, क्योंकि उनके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का टेग नहीं लगा है। इस विषय पर जब नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज से टिप्पणी चाही गई, तो उन्होंने कहा कि दिग्विजय सिंह को विवाद करने की पुरानी आदत है। इसके लिए उनके पास कई रास्ते होते हैं। निश्चित रूप से सुषमा जी को यही बोलना चाहिए, लेकिन राजनीति की धारा में कहीं न कहीं दिग्विजय सिंह ने सुषमा जी को समझा तो सही और उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार तक बताया। इसके पीछे राजनीतिक गुणा-भाग हो सकता है, लेकिन सुषमा स्वराज ने एफडीआई को लेकर लोकसभा में जो तेवर अपनाये थे, व निश्चित रूप से न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि प्रशंसनीय भी है। इससे उनका राजनीतिक कद बढ़ा है। सुषमा जी को भाषण देने की कला बेहद प्रभावित करती है और वे अपने अंदाज में विषयों को प्रस्तुत भी करती है। सुषमा स्वराज भी मप्र के विदिशा संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं और अगर प्रधानमंत्री पद के दावेदार के लिए सुषमा स्वराज का नाम सामने आ रहा है, तो यह राज्य के वांशिंदों के लिए एक शुभ संकेत है। इस नाम को आगे बढ़ाने में दिग्विजय सिंह ने पहल करके राजनीतिक चाल खेली है, जिसके परिणाम एक दो माह के भीतर भाजपा में दिखेंगे।

''मप्र की जय हो''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG