"MPRAAG"RAJESH DUBEY JOURNALIST
''यह ब्लॉग मध्य प्रदेश की पहचान के लिए समर्पित है'' ......
रविवार, 28 अक्टूबर 2012
चल पड़ी अलग राह पर नारी मध्यप्रदेश में
मध्यप्रदेश और स्त्री की बढ़ती ताकत : स्थापना दिवस के 03 दिन शेष
महिलाओं की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है। उनके अधिकार असीमित हैं। वे समाज में अपनी नई राह बना रही हैं। उन्हें कदम-कदम पर तकलीफे भी हो रही हैं। समझौता न करने का उन्होंने संकल्प कर लिया है। इसके चलते मप्र में महिलाओं ने अपनी एक नई दुनिया बसा रही हैं। इस अभियान में मप्र की भाजपा सरकार भी उन्हें हर मुश्किल क्षण में उनके साथ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बेटी प्रेम जगजाहिर है। वे बेटियों की हौसला अफजाई के लिए कोई कौर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जब मप्र में लिंगानुपात असंतुलित हुआ, तो उन्होंने बेटी बचाओ अभियान का शंखनाद कर डाला। बेटियों की शादियां हर मां-बाप के लिए एक कठिन राह होती है, लेकिन सीएम की पहल पर बेटियों की शादिया कन्यादान योजना के तहत कराई जा रही है। ऐसा नहीं है कि मप्र में बेटियों और महिलाओं के लिए स्वर्ग का द्वार खुल गया है। उन्हें अभी भी प्रताडि़त होना पड़ रहा है। कभी वे बलात्कार का शिकार हो रही है, तो कभी वे दलालों के हाथों बिक भी रही हैं। यह मप्र के लिए शर्मनाक स्थिति है। मप्र राज्य के कई हिस्सों से बेटियों के बेचे जाने की घटनाएं सामने आई हैं। महिलाओं के असुरक्षित होने की घटनाएं समय-समय पर सामाजिक संगठन और विरोधी दल सवाल उठाते रहे हैं। इसके बाद भी भाजपा सरकार इससे विचलित नहीं है। राज्य के मुखिया चौहान महिला सशक्तिकरण के लिए हर तरफ के कदम उठा रहे हैं। उन्होंने महिलाओं के लिए स्थानीय चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण देकर पुरूष के बराबर खड़े करने की कोशिश की है। बेटी बचाओ अभियान के लिए वे स्वयं जिलों में रैलीकर जनजागरण अभियान चलायेहुए हैं।इसके बाद भी बेटियां पैदा होने के बाद उनके बाप बेटी को सड़क पर छोड़कर भाग रहे हैं। हाल ही में होशंगाबाद जिले में पांच दिन पहले पैदा हुई बच्ची सड़क पर मिली है, जबकि गुना में चौथी बेटी पैदा करने पर एक पुरूष ने अपनी पत्नी के हाथ काट डाले, भले ही मामला दर्ज हो गया है, लेकिन इसके बाद भी घटनाएं थम नहीं रही हैं। इसके अलावा महिलाओं के साथ उत्पीड़ने की वारदातों में आज मप्र लगातार विवादों में रहता है। आंकड़ों के जाल में जाये, तो महिला उत्पीड़न में मप्र राज्यों में नंबर वन पर है। इस सब के बाद भी महिलाओं की ताकत बढ़ी है, लेकिन महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए महिलाएं स्वयं सामने नहीं आ रही हैं। एनजीओ से जुड़ी महिलाएं जरूर समय-समय पर अपनी ताकत दिखाती है, लेकिन इन सबके बाद मप्र की महिलाएं स्वयं अपने दम पर आगे बढ़ रही है। वे अब खुलकर न सिर्फ शिक्षा पा रही है, बल्कि मुस्लिम युवतियां बुरका पहनकर न सिर्फ कॉलेज में दस्तक दे रही हैं, बल्कि बाजारों में भी अपने घर परिवार का सामान खरीदते नजर आ जाती हैं। राज्य के एक दर्जन ऐसे जिले हैं जहां की युवतियां रोजाना, नदी-नाले पा करने के लिए रस्सियों का सहारा लेकर स्कूल पहुंच रही हैं, तो शहरों की युवतियां फेंशन शो में अपने जलवे दिखा रही हैं यानि हर तरफ महिलाएं अपने कदम बढ़ा रही है, जो कि एक शुभ संकेत हैं। प्रताड़ना है, तो भविष्य की संभावनाएं भी साफ नजर आती हैं। महिला सशक्तिकरण में मप्र लगातार अव्वल हो रहा है। सबसे दुखद पहलू यह है कि वर्ष 2011-12 में सांख्यिकी विभागीय द्वारा जारी रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी दी गई है कि महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं चल रही है, लेकिन उनका असर महिलाओं पर बिल्कुल नहीं हो रहा है। इससे एक सवाल यह उठता है कि राज्य सरकार महिलाओं की ताकत बढ़ाने के लिए हर साल करोड़ों रूपये व्यय किये जा रहे हैं, लेकिन उनके परिणाम शून्य मिल रहे हैं। यह बातें सरकार की रिपोर्ट से ही जारी हो रही है। इससे साफ जाहिर है कि सरकार को इन रिपोर्ट के आधार पर अपनी योजनाओं के बारे में नये सिरे से पहल करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कहां कमी रह गई है। ताकि महिलाओं से संबंधित योजनाएं और अच्छे चल सके। इसके साथ ही उत्पीड़न रोकने के लिए और अच्छे से प्रयास किये जाने चाहिए।
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