मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री और आक्रमक तेवर के नाम से पहचाने जाने वाली उमा भारती ने उप्र के चुनावी पारे को बढ़ा दिया है। इस अभियान को हवा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उमा भारती के खिलाफ बोलकर और दे दी है। ऐसी स्थिति में उमा भारती कहा चुप बैठने वाली थी, उन्होंने न सिर्फ राहुल गांधी पर हमला बोला, बल्कि उनके साथ-साथ मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी घेरा है। इससे साफ जाहिर है कि भविष्य में यूपी के चुनावी समर में मप्र के दिग्गज नेताओं के बीच जबर्दस्त बयानबाजी होने वाली है, जिसकी शुरूआत 19 जनवरी से हो गई है। इन बयानों के अखाड़ेवाजी में मप्र के एक और नेता और राजग के संयोजक शरद यादव कूद पड़े है।
मप्र के नेता दूसरे राज्यों से चुनाव लड़ चुके हैं :
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि मप्र के नेता दूसरे राज्यों में जाकर चुनाव लड़ रहे हैं इससे पहले भी मप्र से राजनीति शुरू करने वाले शरद यादव तो उप्र, बिहार, हरियाणा से चुनाव लड़कर दिल्ली में दिग्गज नेताओं को पसीना छुड़ा चुके हैं इसके बाद नाम आता है कांग्रेस की राजनीति में आधुनिक चाणक्य अर्जुन सिंह का, जिन्होंने दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतकर आलोचक कांग्रेसियों के मुंह बंद कर दिये थे। अब इस कड़ी में साध्वी और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती पहली बार उप्र में बुंदेलखंड के चरखारी वि0स0 क्षेत्र से चुनाव लड़ रही है। यह क्षेत्र लोधी बाहुल्य है और उमा को विश्वास है कि वे यहां से भगवा झण्डा लहरा देगी। वैसे भी उमा भारती यूपी में विधायक बनने नहीं गई है, बल्कि उनकी नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। पार्टी में विरोध की चिंगारी न फैले इसके लिए पार्टी आलाकमान ने अभी उमा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है पर जिस तरह से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भारी विरोध के बाद भी उमा भारती को आगे बढ़ाया है उसके पीछे भी भाजपा की सोची-समझी रणनीति है।
उमा बनाम हिन्दुत्व का चेहरा :
उमा भारती का चेहरा फायर ब्रांड नेत्री की है। वे हिन्दुत्व का चेहरा है और पिछड़े वर्ग में उनकी खासी पैठ है। यूपी उनके लिए पहले से ही रैन बसेरा रहा है, क्योंकि राम मंदिर आंदोलन में उमा भारती ने कई बार आक्रमक तेवर दिखाए हैं और वे हर मोर्च पर कामयाब रही हैं। पिछले पांच-छ: सालों से उनकी राजनीति पटरी से उतरी है, जिसके चलते उन्हें कई प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ा है। वर्ष 23 अगस्त, 2004 में मप्र मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से उन्हें वर्ष 2010 तक राजनीतिक उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरना पड़ा है। इस दौरान वर्ष 2006 में उन्होंने भाजश नामक राजनैतिक दल बनाया जिसने वर्ष 2008 के वि0स0 चुनाव में अपना बेहतर परफार्मेन्स दिखाया लेकिन उनका मन तो कमल की तरफ था जिसके चलते उन्होंने कई बार अपनी धार्मिक यात्राओं के जरिए अपने आपको सीमित कर लिया और 07 जून, 2011 को फिर उमा भारती भाजपा में शामिल हो गई। इसके लिए भी उन्हें खासी मशक्कत करनी पड़ी, क्योंकि उनके विरोधी उन्हें भाजपा में आने नहीं दे रहे थे और अब वे यूपी चुनाव में एक बड़ी नेत्री बनकर उभर रही है।
राहुल ने छेड़ा उमा को :

दिग्विजय क्यों चुप रहे :

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